गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

जो वर्तमान सोंच को अपने को बदलने को तैयार नहीं वह विकासशील नहीं!किसी का विकसित होने तो भ्रम है।

  हम सब बिखर चुके हैं।
हमारी वर्तमान सामजिकता व उसके क्रिया कलाप अब मानवता के विकास में मदद गार नहीं है। गुरुद्वारा, विभिन्न नगरों में भोजन बैंक हमारी आपकी दावतों से बेहतर है। दावतों, बड़ी बडी पार्टियों का मानवता में कोई योगदान नहीं है। मन्दिरों, पुरोहितों आदि का मानवता में कोई योगदान नहीं है।
गांव व नगर में प्रतिवर्ष दावतों पण्डालों आदि के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए जाते हैं,इससे देश,समाज व मानवता का कोई लाभ नहीं होता है।
हमें अपनी सोंच व रुपए खर्च करने का तरीका बदलना होगा।।