सच कहा किसी ने-
भीड़ का धर्म नहीं होता,
भीड़ का तो सम्प्रदाय होता है,
भीड़ का तो जातिवाद होता है।
भीड़ तो राजपथ पर होती है,
धर्म जिस पर चलता-वह पगड़न्ड़ी होती है,
समाजिकता उसे काटने को दौड़ती है,
पुरोहितवाद उसपे पागल कुत्ते की तरह दौड़ता है।
रिश्ते नाते भी उससे मुंह मोड़ चलते है,
धर्म तो अकेला होता है।
परिवार में वो अकेला, भीड़ में वो अकेला,
नितान्त अकेला।
लेकिन अकेले अकेले -अनन्त यात्रा पर निकलता,
एक आत्मा, एक आत्मा तन्त्र पर,
वह शेर सा अकेला चलता,
लेकिन धर्म की गलियों में सुकरात सा जहर पीता,
मीरा की भांति कुल मर्यादा -लोकमर्यादा को ताख पर रखता,
भीड़ का कभी धर्म नहीं होता।
#अशोकबिन्दु