जाति व मजहब से ऊपर उठ कर चेतनांशों हित !
वक्त क्या है?
जो भी हो....
बस, गुजर जाने के लिए है।
जीवन तो वर्तमान की लयता है,
ये नव वर्ष?!
बस, कलेण्डर/पंचांग बदल जाना है।
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