दर्द भी परेशान है-कहाँ कहाँ से उठूं मैं?
ये तन ये वतन का हाल ही कुछ ऐसा है।।
पूरे ब्रह्मांड व जगत में कोई समस्या नहीं है।समस्या स्वयं मानव समाज में है।
होश संभालते ही मानव समाज उपद्रव से भरा लगने लगा। ऐसे में आर्य समाज, शांतिकुंज,जयगुरुदेव संस्था, जय निरंकारी आदि ने हमारी स्थूल से परे सूक्ष्म व कारण जगत को संवारने का प्रयत्न किया।
प्रकृति, पुस्तकें, बच्चे जीवन के करीब लगे। इसके अलावा मानव समाज में कब्रस्तान, श्मशान, जिस घर में कोई बच्चा पैदा हुआ वह घर, जिस घर में किसी की मृत्यु वक्त आदि में हमें सूक्ष्म जगत का अहसास हुआ है। जीवन सिर्फ हमारे व अन्य के हाड़ मास शरीर और उसके व्यवहारों तक सीमित नहीं है।वह जीवन का हजारवां हिस्सा से भी कम है।और फिर हम उसे भी जाति, मजहब, राजनीति, लोभ, लालच आदि में उलझा कर रह जाते हैं। 98 प्रतिशत से ऊपर जनता रोटी, कपड़ा,मकान आदि के माध्यम से सिर्फ इस हजारवां हिस्सा को भी पूर्ण रूप से नहीं जी पाते। हम वर्तमान से हजार गुना पावर में तब प्रवेश करते हैं जब हम सहस्रधार चक्र पर पहुंचते हैं और हम रहस्यमयी दुनिया में प्रवेश करते हैं। अनन्त धाराओं के अहसास से हम हृदय चक्र/अनाहत चक्र को पार करने के साथ ही पाने लगते हैं। लेकिन ये सब मानव व मानव समाज की नजर नहीं दिखता।
हमारा व जगत का स्थूल स्तर के बाद सूक्ष्म व कारण स्तर की पहुंच खामोशी, धैर्य,सहनशीलता, बर्दाश्त करने ,अंतर दशा को अंदर ही अंदर मनन में रखना, वर्तमान को प्रतिक्रिया हीन हो झेलते हुए अपने कर्तव्यों में जीना आदि आवश्यक है। आत्म साक्षात्कार व परम्आत्म साक्षात्कार की शर्तें समाजिकता की शर्तों से उलट हैं। मानवता से ही मानव समाज बेहतर हो सकता है।बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व आदि की दशा आध्यत्म से ही सम्भव है।जातिवाद व मजहबीकरण से नहीं।
वर्तमान में मानव की धर्म के प्रति जो धारणा है,वह मानवता को विकसित नहीं कर सकती।वह तो मानव मानव में दूरियां बढ़ाने में हैं।
हम प्रकृति अंश हैं व ब्रह्म अंश।
हमारा हाड़ मास शरीर प्रकृति है,पांच तत्वों से बना है। हमारी आत्मा...!? आत्मा के सम्बंध में हम कहना चाहेंगे कि परम्+आत्मा। जिसके लिए हमें जातियां, मजहब आदि नहीं चाहिए।धर्म स्थल आदि नहीं चाहिए। हमारे हाड़ मास शरीर को रोटी कपड़ा, मकान,चिकित्सालय, स्कूल आदि चाहिए और आत्मा को ?! आत्मा को क्या चाहिए?!ध्यान, प्राणाहुति, प्राण प्रतिष्ठा, आत्मियता, आत्म सम्मान, आत्मबल, आत्मनिर्भरता आदि के बिना आत्मा के अनन्त प्रवृत्तियों की ओर कैसे? उसके अहसास में कैसे?मन का राजा कैसे?
#अशोकबिन्दु
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