हम चारो निगाह डालते हैंं तो चारोंं तरफ प्रकृति दिखाई देती है हमें सुकून कहांं पर प्राप्त होता है? मानव वर्तमान जीवन शैली से निकल कर कुुुछ समय के लिए प्रकृति मेंं शांति सुकून के लिए जाता है इससे सिद्धध होता है जीवन में क्या चीज महत्वपूर्ण है?
मानवता हिताय सेवा समिति
जाति व मजहब से ऊपर उठ कर चेतनांशों हित !
सोमवार, 8 मार्च 2021
08 मार्च :: विश्व महिला दिवस!! मातृ शक्ति को नमन::अशोकबिन्दु
हम चारो निगाह डालते हैंं तो चारोंं तरफ प्रकृति दिखाई देती है हमें सुकून कहांं पर प्राप्त होता है? मानव वर्तमान जीवन शैली से निकल कर कुुुछ समय के लिए प्रकृति मेंं शांति सुकून के लिए जाता है इससे सिद्धध होता है जीवन में क्या चीज महत्वपूर्ण है?
गुरुवार, 31 दिसंबर 2020
बस, कलेण्डर/पंचांग बदल रहा है::अशोकबिन्दु
वक्त क्या है?
जो भी हो....
बस, गुजर जाने के लिए है।
जीवन तो वर्तमान की लयता है,
ये नव वर्ष?!
बस, कलेण्डर/पंचांग बदल जाना है।
गुरुवार, 10 दिसंबर 2020
बसुधैव कुटुम्बकम व मानवता के बीच करुणा व अहिंसा का शस्त्र::अशोकबिन्दु
देश का वातावरण ऐसा हो कि कोई गुंडा भी मनमानी न कर सके::महात्मा गांधी।
......................................#अशोकबिन्दु
शांति, पूर्णता, प्रेरणा, उत्साह में ही मानव की आंतरिक शक्तियां जागती हैं। किसी पर दोष मड़ते रहने, बहिष्कार करने से समाज का भला नहीं होता।वह भविष्य में समाज के विखराव का कारण ही बनता है। सभी में अच्छाइयां व बुराइयां होती हैं।समाज व मनुष्यता के लिए वही इंसान बेहतर होता है जो इंसान की अच्छाइयों को उजागर करे, उन्हें विकसित करने का अबसर दे।सुधार या शिक्षा किसी पर थोपना नहीं है वरन उसकी प्रतिभाओं को बाहर करना है।पशुमानव को मानव, मानव को देव मानव बनाना है। वैदिक काल में शिक्षा की शुरुआत 'अपनी पहचान'- के विचार व भाव ग्रहण करने के साथ होती थी कि हम व जगत के तीन स्तर हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण। इस पूर्णता के आधार पर ही जीवन में सबकुछ करना पूर्णता की ओर जाना है।यही पुरुषार्थ है। जहां सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर की स्थिति पैदा होती है। जहां पर करुणा व अहिंसा ही शास्त्र व शस्त्र होता है। बसुधैव कुटुम्बकम की दशा है।
इतिहास युद्धों से भरा है।उसने समाधान नहीं दिया है।वरन भविष्य में अन्य युद्धों की शुरुआत दी है।किसी ने कहा है कि दो युद्धों के बीच की शुरुआत युद्ध की तैयारी होती है। अंगुलिमान को बुद्ध ही अंगुलिमान को आगामी अपराध करने से बचा सकता है।बुद्ध उसे व उस जैसे अनेक को अपने साथ लेकर उसे अपराध न करने का अबसर देते हैं।बातावरण, सहकारिता, संघ, आश्रम पद्धति, गुरुद्वारा पद्धति जीवन में अति सहायक है। महात्मा गांधी जब कहते हैं कि वातावरण ऐसा हो कि कोई गुंडा भी मन मानी न कर सके तो इसका मतलब क्या है?
#अशोकबिन्दु
शनिवार, 5 दिसंबर 2020
सिर्फ मानवता ही मानव समाज की समस्याओं का हल ::अशोकबिन्दु
दर्द भी परेशान है-कहाँ कहाँ से उठूं मैं?
ये तन ये वतन का हाल ही कुछ ऐसा है।।
पूरे ब्रह्मांड व जगत में कोई समस्या नहीं है।समस्या स्वयं मानव समाज में है।
होश संभालते ही मानव समाज उपद्रव से भरा लगने लगा। ऐसे में आर्य समाज, शांतिकुंज,जयगुरुदेव संस्था, जय निरंकारी आदि ने हमारी स्थूल से परे सूक्ष्म व कारण जगत को संवारने का प्रयत्न किया।
प्रकृति, पुस्तकें, बच्चे जीवन के करीब लगे। इसके अलावा मानव समाज में कब्रस्तान, श्मशान, जिस घर में कोई बच्चा पैदा हुआ वह घर, जिस घर में किसी की मृत्यु वक्त आदि में हमें सूक्ष्म जगत का अहसास हुआ है। जीवन सिर्फ हमारे व अन्य के हाड़ मास शरीर और उसके व्यवहारों तक सीमित नहीं है।वह जीवन का हजारवां हिस्सा से भी कम है।और फिर हम उसे भी जाति, मजहब, राजनीति, लोभ, लालच आदि में उलझा कर रह जाते हैं। 98 प्रतिशत से ऊपर जनता रोटी, कपड़ा,मकान आदि के माध्यम से सिर्फ इस हजारवां हिस्सा को भी पूर्ण रूप से नहीं जी पाते। हम वर्तमान से हजार गुना पावर में तब प्रवेश करते हैं जब हम सहस्रधार चक्र पर पहुंचते हैं और हम रहस्यमयी दुनिया में प्रवेश करते हैं। अनन्त धाराओं के अहसास से हम हृदय चक्र/अनाहत चक्र को पार करने के साथ ही पाने लगते हैं। लेकिन ये सब मानव व मानव समाज की नजर नहीं दिखता।
हमारा व जगत का स्थूल स्तर के बाद सूक्ष्म व कारण स्तर की पहुंच खामोशी, धैर्य,सहनशीलता, बर्दाश्त करने ,अंतर दशा को अंदर ही अंदर मनन में रखना, वर्तमान को प्रतिक्रिया हीन हो झेलते हुए अपने कर्तव्यों में जीना आदि आवश्यक है। आत्म साक्षात्कार व परम्आत्म साक्षात्कार की शर्तें समाजिकता की शर्तों से उलट हैं। मानवता से ही मानव समाज बेहतर हो सकता है।बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व आदि की दशा आध्यत्म से ही सम्भव है।जातिवाद व मजहबीकरण से नहीं।
वर्तमान में मानव की धर्म के प्रति जो धारणा है,वह मानवता को विकसित नहीं कर सकती।वह तो मानव मानव में दूरियां बढ़ाने में हैं।
हम प्रकृति अंश हैं व ब्रह्म अंश।
हमारा हाड़ मास शरीर प्रकृति है,पांच तत्वों से बना है। हमारी आत्मा...!? आत्मा के सम्बंध में हम कहना चाहेंगे कि परम्+आत्मा। जिसके लिए हमें जातियां, मजहब आदि नहीं चाहिए।धर्म स्थल आदि नहीं चाहिए। हमारे हाड़ मास शरीर को रोटी कपड़ा, मकान,चिकित्सालय, स्कूल आदि चाहिए और आत्मा को ?! आत्मा को क्या चाहिए?!ध्यान, प्राणाहुति, प्राण प्रतिष्ठा, आत्मियता, आत्म सम्मान, आत्मबल, आत्मनिर्भरता आदि के बिना आत्मा के अनन्त प्रवृत्तियों की ओर कैसे? उसके अहसास में कैसे?मन का राजा कैसे?
#अशोकबिन्दु
www.ashokbindu.blogspot.com
मंगलवार, 11 अगस्त 2020
धर्म का राज पथ नहीं पगडंडी होती है:अशोकबिन्दु
सच कहा किसी ने-
भीड़ का धर्म नहीं होता,
भीड़ का तो सम्प्रदाय होता है,
भीड़ का तो जातिवाद होता है।
भीड़ तो राजपथ पर होती है,
धर्म जिस पर चलता-वह पगड़न्ड़ी होती है,
समाजिकता उसे काटने को दौड़ती है,
पुरोहितवाद उसपे पागल कुत्ते की तरह दौड़ता है।
रिश्ते नाते भी उससे मुंह मोड़ चलते है,
धर्म तो अकेला होता है।
परिवार में वो अकेला, भीड़ में वो अकेला,
नितान्त अकेला।
लेकिन अकेले अकेले -अनन्त यात्रा पर निकलता,
एक आत्मा, एक आत्मा तन्त्र पर,
वह शेर सा अकेला चलता,
लेकिन धर्म की गलियों में सुकरात सा जहर पीता,
मीरा की भांति कुल मर्यादा -लोकमर्यादा को ताख पर रखता,
भीड़ का कभी धर्म नहीं होता।
#अशोकबिन्दु
बुधवार, 4 मार्च 2020
इस समिति में सदस्यता के इच्छुक युवक युवतियां सम्पर्क करें!!शर्त है सर्फ मानवतावादी, आध्यात्मिकव लेखक होना!!
धन्यवाद!!
अशोक कुमार वर्मा'बिंदु'
गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020
जो वर्तमान सोंच को अपने को बदलने को तैयार नहीं वह विकासशील नहीं!किसी का विकसित होने तो भ्रम है।
हमारी वर्तमान सामजिकता व उसके क्रिया कलाप अब मानवता के विकास में मदद गार नहीं है। गुरुद्वारा, विभिन्न नगरों में भोजन बैंक हमारी आपकी दावतों से बेहतर है। दावतों, बड़ी बडी पार्टियों का मानवता में कोई योगदान नहीं है। मन्दिरों, पुरोहितों आदि का मानवता में कोई योगदान नहीं है।
गांव व नगर में प्रतिवर्ष दावतों पण्डालों आदि के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए जाते हैं,इससे देश,समाज व मानवता का कोई लाभ नहीं होता है।
हमें अपनी सोंच व रुपए खर्च करने का तरीका बदलना होगा।।