बुधवार, 23 नवंबर 2011

गुरु तेग बहादुर बलिदान दिवस !

वही कौम व देश आगे बढ़ता है जिसको मानने वाले अपनी कौम व देश के लिए बलिदान करने को तैयार होते हैँ.माया,मोह, लोभ व काम पर नियंत्रण के बिना भक्ति भक्ति नहीँ .भक्ति यानि कि दीवानगी.दीवानगी यानि कि अपने लक्ष्य या मिशन के लिए तन ,मन व वचन से समर्पित हो जाना.हमारा एक जयघोष है जय कुरान जय कुरुशान.वैसे मैं जातिवादी व्यवस्था की अपेक्षा वर्ण व्यवस्था का पक्षधर हूँ लेकिन तब भी! मुझे परम्परागत समाज कुर्मी जाति अर्थात कुर्मि क्षत्रिय के अन्तर्गत रखती है.जो कि एक राजा कुरु के उन वंशजों से सम्वंधित है जो कि कृषि कार्य को भी देखने लगे थे.कुरु अर्थात कु और रु,जिसका अर्थ है बुराईयों से बचा कर अच्छाईयों की ओर ले जाने वाला. कुरुक्षेत्र की शान अर्थात कुरुशान (गीता)आज भी प्रासांगिक है. गुरु गोविन्द सिंह का जीवन जिसका व्यवहार पक्ष है कि अपने लक्ष्य या मिशन के लिए माता पिता,बच्चों की कुर्बानी तक के लिए तैयार रहना.यही वास्तव मेँ क्षत्रियत्व की असली पहचान है. आज के ठाकुर व गौरवशाली भारत के क्षत्रियों मेँ अंतर है. मेरे लिए धरती के पहले क्षत्रिय ऋषभ देव जो जिनों के प्रथम महापुरुष कहलाये .जिन का अर्थ जितेन्द्रिय

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